Tuesday, February 4, 2014

आखिर हम ऐसा क्योँ करते हैं

आखिर हम क्योँ ,किसी के भी मध्य जाकर
बिन बुलाये अतिथि बन मध्यस्थता करते हैं
किसी कि भी सम्पूर्ण बातों को सुने बिना
उसे रोकने का प्रयास करने क्योँ  लगते हैं
अच्छे कार्य करने वाले कि टांग क्योँ खीचते है
खुद कुछ कर नहीं सकते वाणी का प्रयोग करते हैं
भले बुरे का ज्ञान नहीं मुंह में आया बक देते हैं
भली बाते करने वाले से झक झक करने लगते हैं
आता जाता कुछ नहीं ज्ञान का प्रकाश देने लगते हैं
मुंह में राम बगल में छुरी ले बाबा बने बैठे हैं
राजनीती आती नहीं पर भारत में नेता बने बैठे हैं
खरबों का घपला कर स्विस के साहूकार बने बैठे हैं
घर कि माँ, माँ नहीं,पार्टी में माँ माँ चिल्लाते रहते हैं
सगे भाई को भाई नहीं सौतेले को भाई भाई कहते हैं
जब सूपड़ा साफ़ हो गया तो ऐड पे एड देते हैं
माँ बेटे दोनों मिलकर अपनी किस्मत को रोते हैं
मंदिर का नाम ना लेते चुनावों में शोर मचाते हैं
मंदिर अयोध्या में ही बनाएंगे कसम राम की खाते हैं |

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