Sunday, June 29, 2014

मेरा धर्म क्या है

क्या
 सर पर दस बाल  की चोटी रखने से हिन्दू हो गया
 शरीर से  थोड़ी खाल कटाने से मुसलमान हो गया
फिर मुझे बताओ मैं हिन्दू हूँ या मुसलमान
मेरे साथ तो दोनों प्रकार का ही संस्कार होगया

मंदिर जाने मात्र से कोई हिन्दू हो गया
और मस्जिद जाने मात्र से कोई मुसलमान हो गया
मै तो दोनों पवित्र स्थानो पर मस्तक झुकाता हूँ
मुझे बताओ की मैं फिर कौन से धर्म से हो गया ,
रामायण महाभारत पढ़ने से मैं  हिन्दू हो गया 
और कुरआन शरीफ पढ़ने से  मुसलमान हो गया
मैं तो सभी धार्मिक पुस्तकें पढता और अम्ल करता हूँ
मुझे  बताओ फिर मैंने कौन सा धर्म ग्रहण कर लिया |
 

Friday, June 27, 2014

एक कहावत है

काला बामन ,ठिगना गूजर
गोरा जाटव ,लंबा कुम्हार
इन चारों से भय माने करतार

Tuesday, June 24, 2014

यदि जिंदगी में उन्नति करनी है तो .

कम खाओ और गम खाओ
सारे जहां  का जहर पीकर नम हो जाओ

Saturday, June 14, 2014

गुजरात और मुख्य मंत्री श्री नरेंद्र मोदी

गुजरात प्रदेश को पहले सौराष्ट्र कहा जाता था ,क्योँकि ये प्रदेश भारत में सभी राज्यों से ज्यादा समृद्ध था ,
उसका कारण था यहां की जनता की  व्यापारिक मानसिकता और वो भी उच्च स्तरीय ,और उसी का कारण है की आज भी  गुजरात में बहुत बड़े बड़े उद्योगों की स्थापना और दिन  प्रतिदिन उन्नति के मार्ग पर प्रशस्त होना
दरअसल गुजरात की जनता बहुत ही संवेदनशील ,विनम्र ,बुद्धिमान ,दूरदर्शी ,सदा जीवन उच्च विचार रखने वाली  पूर्णत: धार्मिक परवर्ती ,और काम करने के अलावा अथवा धन एकत्रित करने के अलावा वो किसी और भी अपने को ना भटकाने वाली ,उसे राजनीति से कुछ लेना देना नहीं ,कौन क्या कर रहा है और क्या नहीं कर रहा ,उसे मात्र अपने काम से काम है ,फजूल की बातों में समय बर्बाद नहीं करती ,वहाँ पर २००१-२ के दंगों से पहले हिन्दू मुस्लिमों में कोई मतभेद नहीं था ,ये सबकुछ जो भी हुआ सब राजनीतिज्ञों और नेताओं के कारण हुआ ,वरना ऐसा भी कुछ नहीं होता ,उनके गाँव ,नगर या शहर में बिजली ,पानी है या नहीं है ,या कौन कितना चन्दा मांग रहा है ,कौन सरकार कितना टैक्स लगा रही है वो कोई खास मुद्दा नहीं मानते वो तो देखते हैं की वो क्या बचा रहे हैं ,जो उनके पास आता वो दे देते हैं ,लड़ाई झगड़ों में वो नहीं पड़ते ,और लगभग सभी गुजराती लखपति तो होते ही हैं ,व्यसन इनको दूर दूर तक छो नहों पाते ,शराब जैसी चीज को ये हाथ तक नहीं लगाते ,इसी वजह से आज भी गुजरात में शराब पूर्णत; प्रतिबंधित है |
दूसरा कारण एक छोटा प्रदेश है जहां पर मात्र २६ लोकसभा की सीट्स हैं तो इतने छोट से प्रदेश  और वो भी सुख समृद्धि से संपूर्ण तो इस छोटे से प्रदेश को संभाला है मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ,काश उन्होंने  उत्तर प्रदेश ,बिहार या मध्यप्रदेश अथवा राजस्थान सभाला होता तो शायद जो मुश्किलें आज उनके सामने आ रहीं है आदि उनसे रूबरू नहीं होना पड़ता यदि होते भी तो निजात पा लेते ,
पर अभी तक देखने से तो मुझे लागतक है की

 गुजरात  जैसे प्रदेश को संभालना एक मामूली बात थी पर भारत जैसा देश जिसमे आज २९ राज्य हैं उनको संभालना मोदी जी के लिए मुस्किल तो नजर आता ही है और टेडी खीर भी है ,यदि उनके सहयोगियों ने पूरी तरह से साथ नहीं दिया तो उनके लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा क्योंकि एक राज्य के सामने एक देश की समस्याएं बहुत ही ज्यादा हैं,और वो भी ऐसा देश जहां का अपना खजाना खाली हो ,खुद मोदी जी के शब्दों में खजाने की हालत बहुत ही खराब है ,आज के के न्यूज़ पेपर टाइम्स ऑफ़ इंडिया में ,यानी की हमको ब्याज तक देने के लिए रुपया उधार लेना पड़ता है ,इससे बुरी हालत और क्या होगी ,उस देश को संभालना कोई खाला जी का खेल नहीं है फिर जहां पर भ्र्ष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है ,अरबों खरबों रुपया बाहर के बैंकों में पड़ा है ,आम आदमी किसी भी प्रकार का टैक्स देने को तैयार नहीं है ,बड़े से बड़ा आदमी टैक्स की चोरी करता है ,ज़रा सोचिये कैसे संभालेंगे मोदी जिन इस २९ राज्य वाले भारत देश को जिनको मात्र एक्सपीरियंस है एक विधायक का या एक मुख्य मंत्री का, मई तो उनको एक नै नवेली दुल्हन की तरह समझता हूँ क्योँकि वो जिस घर में जाती है उसे उस घर की चूल्हा चाकी का भी पता नहीं होता तो वो घर क्या खाक संभालेगी ,जय हिन्द .जय भारत










उनसे उनको रूबरू ना होना पड़ता

Wednesday, June 11, 2014

वास्तविकता जानने का प्रयत्न

क्या कोई  कांग्रेस या  भाजपा का  बड़े से बड़ा नेता ये कहने के लिए तैयार है की अरविन्द केजरीवाल जो कि पिछले समय में दिल्ली के मुख्यमंत्री रह चुके हैं वो एक भगोड़े नेता हैं और यदि वो भगोड़े नेता थे तो उनको ढूंढा क्योँ नहीं गया ,और यदि ढूंढ भी लिया गया तो उनके विरुद्ध वो कार्यवाही क्योँ नहीं की गई जो कि एक भगौडे के विरुद्ध कि जानी चाहिए ,क्या इसके लिए दिल्ली कीवर्तमान सरकार दोषी है या फिर भाजपा की केंद्रीय सरकार ,क्योँकि चुनावों के दौरान भगोड़ा शब्द इन दोनों पार्टीज की नेताओं की ,खास तौर पर भाजपा वालों की जुबान पर पर रखा ही रहता था या प्रत्येक भाषण में बोला जाता था ,उससे ऐसा लगता था की जैसे केजरीवाल कोई बहुत बड़ा मुजरिम हो ,ना की कोई आम आदमी पार्टी का बड़ा नेता ,
कृपया सबूतों के साथ अपना नाम ,पता ,मोबाइल नो ,हमारे प्रोफाइल पर भेजे ,यदि ३ दिन तक किसी ने भी कुछ नहीं भेजा तो समझा जाएगा कि केजरीवाल भगोड़ा नहीं थे बल्कि ये इल्जाम असत्य थे जो कि उनकी प्रसिद्धि को काम करने और लोकसभा चुनावों में हराने  के लिए प्रयोग किये गए थे |

मोदी के सिहासन आरूढ़ होने के १६ दिन बाद

मस्ती का आलम बहुत दिन बाद आया है
थोड़ा सा सरूर तो चढ़ जाने दो,
अभी तो जुबान ही बहकने लगी है ,
थोड़े से पैर भी तो  लड़खड़ाने दो ,
दारु तो हमने कभी पीकर नहीं देखि
अहंकार में ही थोड़ा झूम जाने दो
हमने कब कहा था पूरा ठेका हमारा है
समाज के ठेकेदारों को भी करके दिखने दो |

Thursday, June 5, 2014

नेताओ का मुख और बलात्कार

नेताओ के मुख में जो भी आया वो बोल दिया
बलात्कार को बलात्कार नहीं खेल कह दिया 
मंत्री जी ने कहा लड़कों से गलतियां हो जाती हैं
उसके लिए क्या उनको जेल में भेज दिया जाए
मात्र दो मिनट की छोटी  सी भूल के लिए
भरी जवानी में ही उनको फांसी लगा दी जाय
जब मीडिया कर्मी युवती ने मंत्री से बात की
बोले आपके साथ तो कुछ नहीं हुआ सुरक्षित हो
आप अपना काम चुपचाप करती रहो फिर
किस बात के लिए चिंता क्योँ करती हो
फिर एक  मंत्री जी ने अपने सुविचार दिए
बलात्कारी और स्त्री को  एक नजर से देखिये
यदि स्त्री सहर्ष संलग्न पायी जाए तो
उसको पहले फांसी पर लटका दीजिये ,
फिर एक गृह मंत्री जी का ब्यान देखिये
आप मुख्य मंत्री जी परेशानी भी देखिये
वो क्या कर सकते हैं बलात्कार के केस में
वो बलात्कारियों को ढूंढते फिरेंगे प्रदेश में ,
खुदा ना खास्ता जब इनकी भैंस खो जाती हैं
या किसी झोटे के साथ भाग जाती हैं
तो पूरी पोलिश फ़ोर्स लग जाती है ढूंढने में
और चौबीस घंटे में आ बंध जाती है खूंटे में ,















Tuesday, June 3, 2014

गिनती नहीं साहस चाहिए

भारत में सिक्ख समुदाय की आबादी लगभग २ करोड़ है ,और वो हमेशा अपनी प्रत्येक बात मनवा कर ही दम  लेते हैं और भारत सरकार को झुकना भी पड़ता है |
और मुस्लिमो की आबादी लगभग १७ करोड़ है उनका भी भारत मेंसिक्का  चलता है  ,सभी राजनितिक पार्टियां उनके तलवे चाटती हैं |
और राजपूतों की आबादी लगभग ३५ करोड़ है ,उनको कोई  भी राजनितिक पार्टी नहीं पूछती ,यदि
 पूछ भी लेती हैं तो इस्तेमाल  करके फेंक देती हैंऔर ये उफ़ भी नहीं करते ,फिर उफ़ भी किसके बलबूते पर करें अपना राजपूत भाई तो दूसरी पार्टी में को भागता है ,या जो उसी पार्टी में भी है वो अपने भले के लिए उस भाई से ही अपना मुंह छिपाने लगता  है कि कही पार्टी कि गाज उस पर भी न गिर जाए |
फिर भी ये बात राजपूतों की समझ में नहीं आती और नाहीं ये  कभी संगठित होते और नाहीं भविष्य में होने का प्रयत्न भी करते ,क्या इनकी राजनितिक महत्त्वाकांक्षा मर चुकी है ,या फिर राजधर्म को ही भूल गए हैं