Monday, February 10, 2014

भानुमति का कुनबा

कहीं की ईन्ट कहीं का रोड़ा
भानुमति ने कुनबा जोड़ा
जी हाँ पर अब ये बदल कर हो गया है ,
कहीं कि ईन्ट कहीं का रोड़ा
केजरीवाल ने कुनबा जोड़ा
परन्तु भानुमति का कुनबा तो फिर भी काफी समय चला था और तब भी ये कहावत बन गई पर केजरीवाल जी का कुनबा तो १ महीने में ही टूटना फूटना शुरू हो गया,  ये कैसी विडंबना है ,जो लोग जब आम थे  तो केजरीवाल जी कि हर बात को १ मत से हाँ कहते थे और जैसे एम् एल ऐ बने तो गर्दन हिलने लगी ,कोई कहता है वो डिक्टेटर हैं ,कोई कहते है जो चाहते  हैं वो ही होता है ,कोई कहता है ,वायदे पूरे नहीं कर रहे ,कोई कह रहा है कुर्सी के भूखे हैं कोई कहता है बिजली पानी भूल गये हैं ,कोई साथ छोड़कर भाग रहा है |
और राजनितिक पार्टी तो मानो हाथ धोकर केजरीवाल जी के पीछे पड़ गई हैं जैसे कि उनको और कोई काम ही  नहीं हैं ,रात को कसीदे पढ़ते है मुहावरे याद करते हैं और दिन में सुनाते हैं जितना झूठ बोलाजाय बोलते हैं कभी किसी काम के लिए हाँ तो कभी उसी काम के लिए ना करते हैं मानो  उनको पता ही नहीं है कि वो क्या बोल रहे हैं और खासतौर से कुछ भाजपा नेता जिनको बोलने तक का सलीका भी नहीं है जिनमे  विजेंद्र गुप्ता , जॉली ,हर्षवर्धन आदि इनलोगों ने अपने  बड़े नेताओं राजनाथ जी ,सुषमा जी ,जेटली जी अडवाणी जी से ये भी नहीं सीखा कि बातें कैसे कि जाती हैं ,ये लोग तो केजरीवाल जी के पीछे ही पड़े हुए हैं ,कोंग्रेसी ,सिवाय लवली और दिग्विजय सिंह के अलावा कोई भी कुछ नहीं कहता और ये लोग भी बड़े सलीके से बात तो करते हैं जबकि केजरीवाल जी ने मुख्यतया कोंग्रेसियों कि ही पूछ पर पैर रखा है फिर भी उनमे संयम है लगता है वो खानदानी नेता हैं |
ऊपर से बिन्नी जी ,टीना शर्मा अपने ही घर में कूमल कर रहे हैं या फिर भाजपा के गुर्गे बन रहे हैं ,एक शोएब  इकबाल जी है उनका भी मुझे कुछ समझ नहीं पाया कि वो आखिर चाहते क्या हैं वैसे उनकी इच्छा लोकसभा से खड़ा होने कि है और वो जीत भी सकते हैं ,तो फिर क्यों ना उनको आप पार्टी से क्योँ ना ......................
आखिर ये लोग केजरीवाल जी कि मुसीबतें बढ़ाते ही जा रहे हैं लगता है कि ये  भ्रष्टाचार को दूर नहीं करने देंगे

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