Wednesday, February 12, 2014

कुछ बनाने हेतु बहुत कुछ करना पड़ता है

यदि राजा  हरिश्चंद्र डूम के शमशान घाट में नौकरी ना करते और अपने लड़के के मरने पर अपनी पत्नी से शमशान कि फीस ना वसूलते तो तो "सत्य वादी हरिश्चंद्र" ना कहलाते  |
यदि महाराणा परताप जंगल में रहकर सवयम  और अपने परिवार को घास कि रोटियां ना खिलाकर अकबर से लोहा ना लेते तो आज राजपूतों कि शान महाराणा परताप ना कहलाते |
यदि गांधी जी लंगोटी पहिनकर भारत कि जनता का नेतृत्व ना करते तो ना भारत आज आजाद होता और ना आज महात्मा गांधी भारत के राष्ट्रपिता कहलाते और ना बापू के नाम से जाने जाते |
इसी तरह यदि अरविन्द केजरीवाल  दिल्ली में घूम घूम कर  आम आदमी बनकर  झाड़ू ना चलाते तो आज दिल्ली के मुख्य मंत्री ना बने हुए होते ,और अपनी अपनी ना चलाते हुए होते |
तो भाइयो कुछ बन्ने के लिए कुछ करना और बहुत कुछ सहना और बहुत कुछ सुनना ,और बहुत बार मरना भी पड़ता है ,खाली गाल बजाने से कुछ भी नहीं होता |

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