Saturday, November 30, 2013

दिल्ली में महिलाओं की मुख्य आवश्यक्ता

दिल्ली की मुख्य मंत्री एक महिला के होने के बाद भी यहाँ कि एक ज्वलंत समस्या है जिसको कि सभी पुरुष तो नहीं जानते होंगे क्योंकि दिल्ली सरकार ने पुरुषों के लिए यहाँ की सड़कों के किनारे थोड़ी थोड़ी दूरी पर ही पेशाब घर बनवा रखे है उसके बावजूद भी वो कहीं पर भी किसी दिवार के  सहारे खड़े होकर गधों की भांति पेशाब कर लेते हैं उनको ये भी शर्म ,ह्या नहीं आती की उनके आस पास से स्त्रियां ,बच्छियाँ या पुरुष भी गुजर रहे हैं ,इतना भी इन्तजार नहीं कर सकते की कुछ दूर जाकर वो इस किरया को कर लें ,परन्तु कभी कभी ऐसा भी होता है हम प्रयत्न करने के बाद भी रोक नहीं पाते लिहाजा कहीं पर भी खड़े होकर पेशाब कर लेते हैं ,मैं दिल्ली सरकार से और मुख्यमंत्री जी से और दिल्ली की सम्पूर्ण जनता जिनमे स्त्री पुरुष दोनों ही हैं से पूछना चाहता हूँ की जो स्तिथि आदमियों के साथ होती है क्या ये ही परिस्तिथि ,दिल्ली में बसी हमारी  बहनो ,माताओं के साथ भी होती होगी ,तो वो उस समय में क्या करें क्योंकि लज्जा के कारण वो बेचारी तो इधर उधर भी उरिनेटिंग नहीं कर सकती ,उनको फिर किसी के घर में ही शरण लेनी पड़ेगी ,एक विकट स्तिथि है और यदि उसके साथ किसी का पेट ख़राब हो तो क्या करे ,क्या १५ वर्ष तक दिल्ली की मुख्यमंत्री होने के बाद भी उनको ये बात कभी ख्याल नहीं आई ,जब आप स्त्री होते हुए भी स्त्रियों का भला नहीं कर पाई या उनकी समस्या को नहीं समझ पाई तो फिर आज वो आपको वोट ना दें तो कैसा लगेगा तो अभी भी मेरी आप से शीला दिक्सित जी से और जो भी नई सरकार आने वाली है उनसे प्रार्थना है की वो दिल्ली की महिलाओं के लिए प्रत्येक किलोमीटर पर रोड्स के किनारे पेशाब घर (टॉयलेट्स) अवश्य बनवा दें ताकि उनको ऐसी विकट स्थिति आने पर उनको निजात मिल सके |

Thursday, November 28, 2013

लडकियां

भारतवर्ष में सदियों से आजतक मुख्यतया हिन्दू समाज में जब लड़की पैदा होती है तो बजाय खुशियां मनाने के शोक जैसा कुछ माहोल हो जाता है ,सभी पारिवारिक सदस्यों के मुखों पर १२ बज जाते हैं और कुछ परिवारों में तो उस दिन खाना तक भी नहीं बनता मानो  कि उस आने वाली लड़की ने  उनका सभी कुछ छीन  लिया हो ,और उस नवजात बच्ची को घ्रणा भरे और तिरस्कारित नेत्रों से देखा जाता है जब कि उस एवं अन्य लड़कियों के बिना ना तो समाज बन सकता है ,और ना ही समाज का उद्धार हो सकता है ,और नाही समाज कि रक्षा हो सकती है और नाही समाज का शुद्धिकरण ,क्योंकि ये लडकियां ही बड़ी होकर माँ ,बहन ,पत्नी और भी कुछ अनजाने रिश्ते बनाकर समाज कि उतपत्ति ,रक्षा ,और शुद्धिकरण तक करती हैं |इसके बावजूद भी आखिर आदमी ये सब कुछ क्यों करता है ,लानत है मनुष्यों पर जो खुद को मनुष्य तो कहते हैं पर वो हैं पशुओं से भी गए ,गुजरे |

Sunday, November 24, 2013

सुख कि परिभाषा

जब भीष्म पितामह  म्रत्यु शैया  पर पड़े थे तो उस समय  युधिष्ठिर ने उनसे ये प्रश्न पूछा कि एक साधारण पुरुष किस प्रकार के आचरण करने से जीवन में सरलता से सुख प्राप्त कर सकता है ,तो तीरों से बिंधे भीष्म पितामह ने इस जिज्ञाषा का समाधान करने के लिए मनुष्य के ३६ गुणों का वर्णन किया |
धर्म का आचरण करें पर कटुता ना आने दें | क्रूरता का आश्रय लिए बिना ही अर्थ का उपार्जन और संगर्ह करें |मर्यादा का अतिक्रमण ना करते हुए ही विषयों को भोगें | दीनता ना लाते हुए ही प्रिय भाषण करें |शूरवीर बनें किन्तु बढ़ चढ़ कर बातें ना करें | दान दें परन्तु अपात्र को नहीं | दुष्टों के साथ मेल ना करें ,बंधुओं से कलह ना ठानें |लालची को धन ना दें | जो राज भक्त ना हों ऐसे दूत से काम ना लें | साधों का धन ना छीने | नीचों का आश्रय ना लें | अच्छी तरह जांच किये बिना दंड ना दें | गुप्त मंत्रणा को प्रकट ना करें |जिन्होंने कभी अपकार किया हो उनपर विश्वास ना करें |किसी से ईर्ष्या ना करें और स्त्रियों कि रक्षा करें | शुद्ध होकर रहें  और किसी से घ्रणा ना करें | स्वादिष्ट भोजन भी अधिक ना खाएं | दंभहीन होकर देवपूजन करें | अनिंदित उपाय से लक्ष्मी प्राप्त करने कि इच्छा करें | स्नेह पूर्वक बड़ों कि सेवा करें | कार्यकुशल हों किन्तु अवसर का सदा विचार रखें | केवल पिंड छुड़ाने के लिए किसी से  चिकनी चुपड़ी बात ना करें |किसी पर कृपा करते समय  उसपर  आक्षेप ना करें |शत्रुओं को मारकर उसपर शोक ना करें | अकस्मात क्रोध ना करें | जिन्होंने आपका अपकार किया हो उनके प्रति कोमलता का बर्ताव ना करें |
भीष्म ने कहा हे तात :_
अदि अपना हित चाहते हो तो सदा इसी प्रकार का व्यवहार करो ,यदि ऐसा नहीं करोगे तो जीवन में सहज भाव से सुख और आनंद का भोग नहीं कर पाओगे और कभी भी बड़ी विपत्ति में पड़ जाओगो | तो भाइयो यही है महा भीष्म का उपदेश |



Tuesday, November 12, 2013

मानसिकता

सांसारिक व्यक्तियों को तनाव रहता है
मानसिक शांति नहीं मिलती
किसी भी अवस्था में शान्ति नहीं है 
ह्रदय उद्विग्न रहता है
आत्मा अतृप्त रहती है
किसी भी कार्य में मन नहीं लगता
स्वभाव चिड़चिड़ापन बना रहता है
नकारात्मकता ह्रदय वासित बनी है
चहुँ और तिमिर ही तिमिर बना है
किसी पर विश्वास नहीं होता
सभी क्रूर ,दुष्ट दृष्टि गोचर होते हैं
 सवयम पर भी विश्वास नहीं है
जीव जंतुओं से भी प्रेम नहीं होता
वृक्ष ,लताओं से भी लगाव नहींहोता
वातसल्य का भाव उत्त्पन्न नहीं होता
व्यवहारिकता रास नहीं आती
आत्महत्या करने को मन करता है
अकेलापन अच्छा लगता है
जानते हो ऐसा क्योँ होता है
क्योँ कि हम  लेना जानते हैं
देने का हमारे पास नाम नहीं होता |

 

Saturday, November 2, 2013

दीपावली

दीपावली पर दीप प्रज्ज्वलित कर
ह्रदय वासित कर लो यही धारणा
भाई चारे कि ज्योति जलाकर
समूल नष्ट करेंगे वैमनस्य घ्रणा ,
महालक्ष्मी कि स्तुति करके
अंत:स्थल से तजो धन तृष्णा
मिट जायेंगे सब कष्ट हमारे
मिट जायेंगे सब सृष्टि ऋणा ,
मित्र जनों को मिष्ठान अर्पण कर
सत्य अहिंसा का दो व्याख्यान
तिमिर को दृष्टि ओझल करना है
हमको करना  है यही आवाह्यां ,
दीपावली हम सभी मनाएं
हिन्दू ,ईसाई और मुसलमान
एक साथ सब मिलकर गायें
हमसबका भारत देश महान |