Friday, September 19, 2014

अब न्याय पालिका के न्यायाधीश भी बदसलूकी में आरोपित

अभी तक तो हमारे देश की पोलिश ही बदनाम थी और एक मुहावरा बन चुका है की जब "रक्षक ही भक्षक " हों तो क्या किया जाए ,अब तक जितने भी बलात्कार काण्ड ,छेड़खानी के मामले या नारी जाती पर एब्यूजिंग होती थी तो हर व्यक्ति का ध्यान जाता था कि ये ऐसा करने वाले गुंडे ,मवाली या बदमाश ही होंगे पर फिर पता चला कि ऐसे कामों में पुलिश वाले भी शामिल होने लगे हैं तो आम आदमी का सर शर्म से झुक जाता था पर पिछले कुछ दिनों से समाचार पत्र ,रेडिओ ,टी वि चैनल सभी पर सुनाई देता है कि पहले एक सुप्रीम कोर्ट के जज घेरे में आये जो जजों के शिक्षा देते वक्त एक जज लड़की से बदतमीजी कर बैठे ,वो अभी ठंडा न्नहीं हुआ था कि अभी अभी सुप्रीम कोर्ट के नए बनने वाले जज दत्तू साहब पर भी एक वकील और रॉ कि अधिकारी ने दावा ठोक दिया कि उन्होंने उसके साथ जो किया वो ठीक नहीं था तो दत्तू साहब सुप्रीम कोर्ट के जज बनने के काबिल नहीं है फिर अलाहाबाद में ११ प्रिशिक्षु जजों ने एक साथी जज लड़की के साथ बदतमीजी कि ,ऐसी घटनाएं प्रितिदिन हो रहीं हैं ,जिसके कारण भारत और सभी भारतवासियों का सर शर्म से चुल्लू भर पानी में डूब चुका है ,
अब ज़रा सोचिये कि यदि देश कि पुलिश और जज दोनों ही एक जैसे और बलात्कारियों कि श्रेणी में आ जाएंगे तो फिर जिनके साथ बलात्कार होता है तो उनको न्याय कैसे मिलेगा और जिस देश में न्याय व्यवस्था ही फेल हो जायेगी तो वहाँ लोकतंत्र कैसे जीवित रहेगा ,जबकि हमारे देश कि सभी व्यवस्थाएं ही कुछ अजीब गरीब तरह से चल रही हैं ,

चीन के राष्ट्रपति की मेजबानी पर तफसरा

क्या मेरे देशवासियों को ऐसा नहीं लगा की हमारे प्रिय प्रधानमंत्री  मोदी जी ने ,चीन के राष्ट्रपति की मेजबानी में कुछ ज्यादा ही पैर  पावड़े बिछा  रखे थे की वो गांधी जी की प्रतिमा पर  साबरमती आश्रम में पुष्प चढ़ाते समय अपनी चप्पल्स भी निकालनी भूल गए .दुसरे ये भी देखना गवारा नहीं किया कि जिस व्यक्ति को आप गुजराती षटरस भोजन परोस रहे हैं उसके सैनिक हमारी सीमा को कितने अंदर तक प्रवेश का गए हैं ,लगता है उनका ५६ इंच का सीना सिकुड़ कर शायद ३६ इंच का ही रह गया है ,
और वो उसको इस प्रकार मेजबानी कर रहे हैं मानो कि वो चीन का राष्ट्रपति ना होकर मोदी जी अथवा हमारे देश का अन्नदाता ,या आश्रयदाता हो मोदी जी उसको ऐसे ऊँगली पकड़ कर घूमा रहे हैं जैसे कि वो बच्चा हो ,कभी उसे फूल तो कभी खिलौना तो कभी छतरी और कभीकभी मिटटी के शेर दिखाकर ,और वो ये भी भूल गए कि मोदी खुद भी भारत जैसे देश के प्रधानमंत्री भी हैं ,ना कि कोई मामूली आदमी  |
और उसके बावजूद भी मुझे तो चीनी राष्ट्रपति के मुख पर कोई ख़ास शिकन नजर नहीं आई और नाही उन्होंने अपनी मुस्कराहट बिखेरीं ,मुझे तो लगता है चीनी अपने देश कि खातिर कुछ भी कर लेते हैं पर मैफिर भी  कहूँगा कि दुश्मन ,तो दुश्मन ही होता है ,और वो भी चीनियों जैसा ये लोग दोस्ती को भूल जाते हैं पर अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिए दुश्मनी को नहीं भूलते ,चीन विस्तारवादी देश है और वो भारत तो  क्या किसी भी पडोसी देश का मित्र नहीं हो सकता ,ये बात तिब्बतियन भली भांति जानते हैं ,जानते तो हम भी हैं पर हम ज़रा अधिक ही शांतिप्रिय हैं ,हम अपनी जान ही नहीं सबकुछ दे सकते हैं पर शान्ति अवश्य खरीदते हैं ,चीन कि निगाहें आजकल नेपाल ,पाकिस्तान ,और ंहमारे अरुणाचल प्रदेश पर भी है ,इसलिए मोदी जी ज़रा संभल के ये रास्ते बहुत ही कटीले हैं |

Wednesday, September 17, 2014

हकीकत

किसी नवयौवना को देखकर
सत्तर साल के बुड्ढे की
राल टपकने  लगती है
साठ साल के बुड्ढे का
दिल धड़कने लगता है
चालीस साल का व्यक्ति
मिलने को आतुर होने लगता है
पच्चीस साल का युवक
रास्ता छोड़,दूसरी और चलने लगता है ,

Monday, September 15, 2014

जुबान का रास ( वाणी की मिठास )

एक साधारण व्यक्ति बियाबान जंगल से गुजर रहा था दूर दूर तक कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ,भूख के कारण उसकी जान निकली जा रही थी ,थककर चूर हो चुका था अचानक उसको दूर एक झोपडी चमकी और वो व्यक्ति उस झोपडी की तरफ चल दिया वहाँ जाकर देखा तो वहां पर बुढ़िया कुछ पका रही थी ,उसने बुढ़िया को बड़े ही प्यार से दुआ सलाम किया और एक लोटा पानी माँगा ,तो उसने पानी दिया जिसे पीकर उसने अपनी प्यास बुझाई और फिर कहा हे माँ मुझे भूख बहुत जोर से लग रही है ,क्या पका रही हो ,बुढ़िया ने बहुत ही प्यार से कहा बेटा खिचड़ी पका रही हूँ अभी खाकर अपनी भूख मिटा लेना दोनों माँ बेटे साथ साथ खाएंगे ,
थोड़ी देर बाद वो व्यक्ति बुढ़िया से बोला हे माँ तुम इस बियाबान जंगल में इस घास फूस की झोपडी में रहती हो यदि रात्रि में आंधी ,तूफ़ान आ जाएँ और खूब  बरसात हो जाए तो तुम्हारी ये झोपडी तो उड़ जायेगी या टूट फुट कर बह जायेगी तो फिर तुम क्या करोगी ,तब तक खिचड़ी भी पाक चुकी थी ,इतनी बात सुनकर बुढ़िया को इतना क्रोध आया की उसने खिचड़ी की भरी पतली उस व्यक्ति के ऊपर फेंक कर मारी जिससे की उसके सभी कपडे भी  ही खराब हो गए ,और वो भूखा प्यासा ही उसकी झोपडी से चल दिया ,
अब जो भी व्यक्ति रास्ते में उसके कपडे देखता तो उससे पूछता भाई ये क्या हो गया ,तो वो एक बात ही कहता भाई ये मेरी जुबान का रास टपक रहा है
तो भाइयो मेरी आपसे भी प्रार्थना है कि आप भी ज़रा अपनी जुबान से सोच समझकर ही बोले वरना कहीं आपका भी ऐसा ही हाल ना हो और आप हंसी के पात्र बनो |

Sunday, September 14, 2014

कभी कभी दड़बे से निकालकर मेरे हुश्न के मालिक ,
अपनी नजरे इनायत हम पर भी  कर दिया करो
हमारे आशिक़ लाइन लगाकर हमें घूरा करते हैं पर
 हम बदनसीब माशूक़  हैं जो सिर्फ तुम पर मरते हैं 
कहीं ऐसा ना हो की मुहब्बत में आग लग जाए और
कोई चील कौवा आपकी मासूका को उठा ले जाए
फिर हमें बेवफा माशूका का खिताब देने भर से
आपके दिल में बसी मुहब्बत बदनाम ना हो जाए |

Friday, September 12, 2014

मोदी जी एक ,चुनौती देने वाले अनेक

जी हाँ आदरणीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी को चुनौती देने वालों की कमी नहीं है
सर्व प्रथम सभी विपक्षी पार्टीज जिन्होंने चुनाव वाले दिन से ही मोदी जी का जीना हराम कर दिया और उनके  पीछे हाथ धोकर  ऐसे पड़ गए जैसे की किसी अनजान व्यक्ति के पीछे कुत्ते भोंक भोंक कर पीछे पड़ जाते हैं  ,
उसके बाद उन्ही की पार्टी के सीनियर नेता भी दिल से या बगैर दिल के उनके पीछे पड़े रहे ,उनसे तभी पीछा छूटा जब वो देश के प्रधानमंत्री बन गए ,वैसे तो अंदर घात अभी भी चालु है ,
सम्पूर्ण देश की ६७ %आबादी जिसने भाजपा या मोदी जी ,अथवा आर ऐस ऐस को अपना वोट नहीं दिया क्योँकि वो समझते थे की इनके बस्का देश चलाना नहीं है उनको मोदी जी के बाजूओं पर भरोसा नहीं था ,
फिर प्याज और टमाटर की कीमतों का आसमान को छूना ,
और पूरे देश पर सभी वस्तुओं पर महंगाई की मार ,जो काम होने का नाम ही नहीं ले रही थी ,
आतंकवादी और पाकिस्तान ,जो आस्तीन का सांप बनकर डसने की कोशिश बराबर कर रहा था ,
आज उनके कार्यकर्ता जो उनकी कार्य शैली से नाराज हैं क्योँकि आज किसी भी भाजपा कार्यकर्ता का या उनके संगी साथी या गली मोहल्ले वाले वाले जिनसे उन्होंने वोट मांगे थे उनके काम नहीं हो रहे ,इसीलिए विधान सभा के उपचुनावों में भाजपा को मुंहकी खानी पड़ेगी ,
और अंत में कहूँगा भगवान जी जो की मोदी जी के आने के बाद से ही उनके पीछे पड़े हुए हैं ,तभी से बाढ़ ,भूकम्प ,आंधाड़ ,तूफ़ान और नाजाने क्या क्या हो रहा है हजारों आदमियों की जाने जा रहीं है और अभी तक भी कुदरत का कहर बर्प रहा है आज जम्मू कश्मीर ,और पंजाब में जो त्राहि त्राहि मच रही है है वो इसी बात का प्रमाण है ,और कहीं एक्सीडेंट ,एरोप्लेन एक्सीडेंट ,ट्रैन एक्सीडेंट ,सभी कुछ तो हो रहा है ,
आगे भी भगवान ही मालिक है |

Wednesday, September 3, 2014

एक आदर्श और सशक्त विचार

यदि व्यक्ति जीवन में तीन प्रकार के कोट्स से बच जाए तो उसकी उन्नति को कोई भी मनुष्य ,भाग्य या मैं तो कहूँगा कि स्वयं भगवान जी भी चाहें तो नहीं रोक सकते ,वो व्यक्ति दिन प्रतिदिन आसमान कि ऊंचाइयों को छूटा चला जाएगा ,अब आपमकहेंगे कि वो तीन कोट कौन से हैं ,तो भाइयो वो तीन कोट हैं ,
१ काला कोट ( जिसको वकील साहब पहिनते हैं )अब आप कखुद समझ गए होंगे इसका तातपर्य क्या है |
२सफ़ेद कोट (जिसको डॉक्टर पहिनते हैं )इसका मतलब भी आप समझ गए होंगे |
३ पेटी कोट (जिसे स्त्रियां पहनती हैं )इसका मतलब भी आप भलीभांति समझ गए होंगे |
वैसे भी समझदारों को इशारा ही काफी होता है ,इसलिए अब आपके ऊपर निर्भर करता है |

Tuesday, September 2, 2014

पैसा हाथों का मेल है

मेरे एक जान पहिचान वाले मुझसे मिलने आये काफी देर तक बात चीत चलती रही और फिर अचानक पैसे को लेकर बात होने लगी ,तो वो बोले भाई "पैसा तो हाथ का मेल है "परन्तु मैं मानने को तैयार नहीं था और मैं कह रहा था की पैसा हाथ का मेल नहीं बल्कि हाथो की मेहनत और मुकद्दर का खेल है ,परन्तु वो भी नहीं मान रहे थे अपनी बात पर अडिग थे ,आखिर किसी निर्णय पर नहीं पहुंचे और चाय पानी पीकर वो अपने घर बुलंदशहर को वापस चल दिए ,दुआ सलाम कर चले गए , ,अचानक लगभग १ घंटे बाद उनका फोन आया भाई मेरा तो किसी ने पर्स मार लिया शायद ,अब जेब में पैसे नहीं हैं ,मैंने पूछा अभी कहाँ से बोल रहे हो ,बोले आनंद विहार बस अड्डे से ,मैंने कहा वहाँ कैसे पहुंचे ,बोले कुछ पैसे ऊपर वाली जेब में पड़े थे सो टिकट ले लिया और यहाँ पहुँच गया ,
अब वो बोले अब मैं क्या करूँ ,मैंने कहा यार पैसा तो हाथ का मेल है हाथ रगड़ो और पैसा बनाओ और टिकट लो और घर जाओ ,वो बोले मै दुखी हूँ और तुमको मजाक सूझ रही है ,भाई मै मजाक कहाँ कर रहा हूँ मै तो आपकी बात ही दुहरा रहा हूँ ,
अच्छा एक काम करो किसी की दूकान पर काम कर लो मेहनत से पैसे मिल जाएंगे और फिर घर चले जाना ,बोले यार ऐसा कैसे हो सकता है ,एक दिन काम काने के ५० या १०० तो दे ही देगा ,इतने का ही टिकट होगा बुलंदशहर का ,वो तो बात ठीक है पर यार क्योँ मिटटी पलीत करा रहे हो ,मेरा तो यहां कोई जानने वाला भी नहीं है ,मैं बोला फिर मेरे घर आ जाओ ,तो वो बोले मेरी जेब में वहां आने के लिए भी पैसे नहीं है ,अजीब समस्या हो गई ,आखिर मैंने शाहदरा में अपने एक जान पहिचान वाले को फोन किया और उसे आनंद विहार अड्डे पर भेजा और उनको ५०० रूपये देकर आने को कहा ,वो पैसे देकर आ गया ,और फिर एक सप्ताह बाद उनका फोन आया भाई आप ठीक कह रहे थे पैसा हाथ का मेल नहीं बल्कि दोनों हाथो की मेहनत का फल है और उन्होंने ५०० रुपया मनी ऑर्डर भी मुझे भेज दिया ,तो भाइयो आई बात समझ में आप भी जानो और समझो पैसा बहुत मेहनत से कमाया जाता है ,हाथों का मेल नहीं है ,और जब जेब में पैसा नहीं होता तो ५ का नोट ५० का और १० का नोट १०० का और १०० का नोट १००० का नजर आता है |

Monday, September 1, 2014

क्या हिन्दुओं में लड़कों की कमी है ?

कुछ लोग कहते हैं क्या हिन्दुओं में लड़कों की कमी है ,
हन्दुओं में लड़कों की कमी नहीं है ,"परन्तु  अच्छे और पढ़े लिखे लड़कों की बहुत भारी कमी है ,
क्योँकि पहले तो जो लड़के अच्छी तरह से पढ़लिखकर अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं या अच्छी नौकरी पा लेते है वो तो किसी भी गैर बिरादरी में शादी रचा लेते हैं ,अब बचते हैं थोड़े बहुत संस्कारी पढ़े लिखे लड़के ,तो वहाँ "एक अनार और सौ बीमार "वाला हाल होता है वहाँ पर जब बोली लगती है तो जो अधिक पैसे वाला है वो ही उसे खरीदकर अपनी बहन या बेटी की शादी उसके साथ शादी कर देता है ,अब जो बाकी पढ़ी लिखी वेल क्वालिफ़िएड ,अच्छी नौकरी करने वाली लडकियां बचीं वो क्या करें वो किसके साथ शादी करें ,या तो वो किसी दूसरी बिरादरी में जाकर शादी करें या फिर अपनी बिरादरी में जो काम पढ़े लिखे आधे अधूरे ,मजदूरी करते ,या अपनी थोड़ी बहुत खेती बिगाड़ते या,किराया खाते लड़के  बचे ,उनसे शादी करने का पट्टा अपने गले लटका कर अपनी जिंदगी बर्बाद कर लें क्या उनके लिए यही नियति है ,भाई अब लड़की पहले वाली लड़की गाय ,भैंस या बकरी नहीं रही की ,माँ बाप ने जब चाहा ,जिसके भी गले में या जिस खूंटे से भी बांधा और जिंदगी में मरने जीने को छोड़ दिया ,परन्तु अब वो समझदार हो गई हैं इसलिए जिंदगी को नरक बनाने के लिए तैयार नहीं है ,और मजे की बात ये है की वो आधे अधूरे कम पढ़े लिखे भी बिना मोटा दहेज़ लिए पढ़ी लिखी नौकरी करती लड़की से शादी करने के लिए भी उनके अभिभावक तैयार नहीं होते यानी की उनको बहु नहीं बल्कि पैसा कमाने वाली घर में काम करने वाली मोटा दहेज़ लेकर आने वाली ,वंश को चलाने वाली एक नौकरानी चाहिए यानी की बहु या लड़की नहीं बल्कि एक मशीन हो गई |