जिनको दुत्कारने के सिवाय
दो शब्द प्रेम के इस्तेमाल नहीं करते ,
जिनको गले से लगाना तो बहुत दूर
पास बिठाना भी अच्छा नहीं समझते ,
जो सुबह से शाम तक
कोल्हू के बैल कि भांति रौंदे जाते हैं
जिनका खून चूस चूसकर
साम्राज्य दर साम्राज्य खड़े किये जाते हैं
जिनके कंधे पे तोप रखकर
सदैव किसी भी क्षेत्र में गोले दागे जाते हैं
खुद हजारों रोज खर्च करते है
उनको पेट भरने हेतु दिए जाते हैं
अंतिम समय में अर्थी उठाकर
वो ही शमशान घाट पर ले जाते हैं
जिनके लिए अथाह दौलत छोड़ी
वो मात्र दाग दे, दगाबाज बन जाते हैं
दो शब्द प्रेम के इस्तेमाल नहीं करते ,
जिनको गले से लगाना तो बहुत दूर
पास बिठाना भी अच्छा नहीं समझते ,
जो सुबह से शाम तक
कोल्हू के बैल कि भांति रौंदे जाते हैं
जिनका खून चूस चूसकर
साम्राज्य दर साम्राज्य खड़े किये जाते हैं
जिनके कंधे पे तोप रखकर
सदैव किसी भी क्षेत्र में गोले दागे जाते हैं
खुद हजारों रोज खर्च करते है
उनको पेट भरने हेतु दिए जाते हैं
अंतिम समय में अर्थी उठाकर
वो ही शमशान घाट पर ले जाते हैं
जिनके लिए अथाह दौलत छोड़ी
वो मात्र दाग दे, दगाबाज बन जाते हैं
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