Monday, May 19, 2014

एक वर्ण ऐसा भी है

हिन्दूओं को ऋषि मुनिओं ने चार वर्णों में बाँट दिया था ,जिनमे प्रमुख ,१ क्षत्रिय २ पंडित ३वैश्य ४ शूद्र थे ,ये सभी वर्ण युगों से अपने कर्मों के साथ साथ देश और प्रदेश के लाभ हेतु समय असमय या कोई कठिनाई उत्पन्न होने पर अन्य कार्य भी कर लेते थे पर अपना मुख्य कार्य अवश्य करते थे  ,पर अब ये सभी वर्ण सभी कार्य ,चाहे सामाजिक हों या राजनितिक अथवा व्यापारिक सब कुछ कर लेते हैं और राजनीति में तो बहुत ही बढ़चढ़ कर पार्ट अदा करते हैं ,
परन्तु इनमे एक वर्ण ऐसा भी है जो अपनी मान मर्यादा ,गौरव ,अपना इतिहास ,अपनी राजनीतिक आकांक्षा ,अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को भूलकर अपने रक्त की ऊष्मा को बरकरार रखकर अपने ही रक्त का रक्तं पिपाशु बनकर दुसरे वर्णों ,दूसरी राजनितिक पार्टियों ,चाहे वो कांग्रेस हो या भाजपा अथवा बसपा या सपा अथवा कोई भी अन्य उन सभी के सार्वभोमियों ,अध्यक्षों ,नेताओं ,नेत्रियों ,के हाथों अथवा इशारों तक की कठपुतली बनकर अपने ही रक्त को भी हल्दीघाटी में हरवाकर संकोच नहीं कर रहा है ,जो कार्य पहले भाट,, चारण ,कवि किया करते थे वो कार्य भी आज यही वर्ण कर रहा है ,और आनंदित करने वाली बात ये है की उनको लज्जा नाम की चीज नहीं है अपितु फक्र महसूस कर रहे हैं ,
आखिर  क्योँ ,इस  वर्ण को ऐसा क्या हो गया है जब की धनाभाव भी नहीं है ,शिक्षा का अभाव भी नहीं है ,शक्ति का अभाव भी नहीं है ,शौर्यता का अभाव नहीं है ,कहने कहने का तातपर्य है की किसी चीज का भी अभाव नहीं है यदि अभाव है तो संगठन का ,एकता का ,जो आज ५०० वर्षों से नहीं हो पा रहा है ,
तो क्या ये वर्ण एक दिन ऐसे ही रेंगता हुआ और जलालत भरी जिंदगी जीता हुआ काल कवलित हो जाएगा ,या कोई भीष्म इसे फिर से जीवन दिलवा सकेगा ,शायद नहीं ,क्योँकि कोई किसी की सुनता ही नहीं ,और जहां कोई किसी की सुनता नहीं तो वहाँ ना तो कोई अवतार हो सकता है और नाहीं कोई नेता और नाही कोई उबारने वाला ,जय श्री राम












और एक

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