Friday, September 19, 2014

चीन के राष्ट्रपति की मेजबानी पर तफसरा

क्या मेरे देशवासियों को ऐसा नहीं लगा की हमारे प्रिय प्रधानमंत्री  मोदी जी ने ,चीन के राष्ट्रपति की मेजबानी में कुछ ज्यादा ही पैर  पावड़े बिछा  रखे थे की वो गांधी जी की प्रतिमा पर  साबरमती आश्रम में पुष्प चढ़ाते समय अपनी चप्पल्स भी निकालनी भूल गए .दुसरे ये भी देखना गवारा नहीं किया कि जिस व्यक्ति को आप गुजराती षटरस भोजन परोस रहे हैं उसके सैनिक हमारी सीमा को कितने अंदर तक प्रवेश का गए हैं ,लगता है उनका ५६ इंच का सीना सिकुड़ कर शायद ३६ इंच का ही रह गया है ,
और वो उसको इस प्रकार मेजबानी कर रहे हैं मानो कि वो चीन का राष्ट्रपति ना होकर मोदी जी अथवा हमारे देश का अन्नदाता ,या आश्रयदाता हो मोदी जी उसको ऐसे ऊँगली पकड़ कर घूमा रहे हैं जैसे कि वो बच्चा हो ,कभी उसे फूल तो कभी खिलौना तो कभी छतरी और कभीकभी मिटटी के शेर दिखाकर ,और वो ये भी भूल गए कि मोदी खुद भी भारत जैसे देश के प्रधानमंत्री भी हैं ,ना कि कोई मामूली आदमी  |
और उसके बावजूद भी मुझे तो चीनी राष्ट्रपति के मुख पर कोई ख़ास शिकन नजर नहीं आई और नाही उन्होंने अपनी मुस्कराहट बिखेरीं ,मुझे तो लगता है चीनी अपने देश कि खातिर कुछ भी कर लेते हैं पर मैफिर भी  कहूँगा कि दुश्मन ,तो दुश्मन ही होता है ,और वो भी चीनियों जैसा ये लोग दोस्ती को भूल जाते हैं पर अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिए दुश्मनी को नहीं भूलते ,चीन विस्तारवादी देश है और वो भारत तो  क्या किसी भी पडोसी देश का मित्र नहीं हो सकता ,ये बात तिब्बतियन भली भांति जानते हैं ,जानते तो हम भी हैं पर हम ज़रा अधिक ही शांतिप्रिय हैं ,हम अपनी जान ही नहीं सबकुछ दे सकते हैं पर शान्ति अवश्य खरीदते हैं ,चीन कि निगाहें आजकल नेपाल ,पाकिस्तान ,और ंहमारे अरुणाचल प्रदेश पर भी है ,इसलिए मोदी जी ज़रा संभल के ये रास्ते बहुत ही कटीले हैं |

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