Monday, September 15, 2014

जुबान का रास ( वाणी की मिठास )

एक साधारण व्यक्ति बियाबान जंगल से गुजर रहा था दूर दूर तक कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ,भूख के कारण उसकी जान निकली जा रही थी ,थककर चूर हो चुका था अचानक उसको दूर एक झोपडी चमकी और वो व्यक्ति उस झोपडी की तरफ चल दिया वहाँ जाकर देखा तो वहां पर बुढ़िया कुछ पका रही थी ,उसने बुढ़िया को बड़े ही प्यार से दुआ सलाम किया और एक लोटा पानी माँगा ,तो उसने पानी दिया जिसे पीकर उसने अपनी प्यास बुझाई और फिर कहा हे माँ मुझे भूख बहुत जोर से लग रही है ,क्या पका रही हो ,बुढ़िया ने बहुत ही प्यार से कहा बेटा खिचड़ी पका रही हूँ अभी खाकर अपनी भूख मिटा लेना दोनों माँ बेटे साथ साथ खाएंगे ,
थोड़ी देर बाद वो व्यक्ति बुढ़िया से बोला हे माँ तुम इस बियाबान जंगल में इस घास फूस की झोपडी में रहती हो यदि रात्रि में आंधी ,तूफ़ान आ जाएँ और खूब  बरसात हो जाए तो तुम्हारी ये झोपडी तो उड़ जायेगी या टूट फुट कर बह जायेगी तो फिर तुम क्या करोगी ,तब तक खिचड़ी भी पाक चुकी थी ,इतनी बात सुनकर बुढ़िया को इतना क्रोध आया की उसने खिचड़ी की भरी पतली उस व्यक्ति के ऊपर फेंक कर मारी जिससे की उसके सभी कपडे भी  ही खराब हो गए ,और वो भूखा प्यासा ही उसकी झोपडी से चल दिया ,
अब जो भी व्यक्ति रास्ते में उसके कपडे देखता तो उससे पूछता भाई ये क्या हो गया ,तो वो एक बात ही कहता भाई ये मेरी जुबान का रास टपक रहा है
तो भाइयो मेरी आपसे भी प्रार्थना है कि आप भी ज़रा अपनी जुबान से सोच समझकर ही बोले वरना कहीं आपका भी ऐसा ही हाल ना हो और आप हंसी के पात्र बनो |

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