Friday, April 4, 2014

इस बार बसंत भी क्योँ नहीं आया

ऐसा भान होता है
शायद इस बार
पतझड़ के उपरांत
बसंत भी नहीं आया ,
कहीं किसी कि नजर लगी
या किसी ने उसे बहकाया
अथवा किसी ने विरोध हेतु
उसे भी है उकसाया ,
शायद युग युगांतर से
तुम निरंतर समय पर
जनता जनार्दन के हित हेतु
अविराम चले आ रहे हो ,
सम्पूर्ण संसार तुम्हारे आने पर
आनद विभोर हो जाता है
छोटे से छोटा वृक्ष भी
नव किसलयों से पूर्ण हो जाता है ,
तुम्हारी सौंदर्यता को निहारकर
भला कौन मंत्र मुग्ध नहीं होता
तुम्हारे पुष्पों कि सुगंध से
कौन अभिभूत नहीं होता
आज लगता है प्रदूषण से
तुम भी शैया पर पड़ गए हो
मानव मात्र की अपेक्षाओं से
जुल्म का शिकार हो गये हो |
या चुनावों का प्रभाव
बसंत पर भी पड़ गया है
नेताओं की गन्दी ,भोंडी ऊंची झूठी 
भाषा से वौइस् पोलुशन हो गया है |



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