Saturday, March 28, 2015

दादा साहब फाल्के पुरस्कार और भारत रत्न

मैं आज तक एक बात नहीं समझ पाया "दादा साहेब फाल्के पुरस्कार "आखिर तभी क्यों दिया जातां है जब की वो या तो मृत्यु को प्राप्त कर चूका होता है अथवा मरणासन्न स्तिथि में होता है या फिर उसके जीवन के अंत में  कुछ ही दिन बाकी होते हैं |
क्या इसके पीछे भी कोई लॉजिक है ,
या जो पुरस्कार राशि दी जाती है वो उसके हर्ज मर्ज में काम आ जाए ,
या यदि उस पुरस्कार वाले व्यक्ति ने अपनी अगली पीढ़ी के लिए कुछ नहीं छोड़ा तो अंतिम समय सरकार धन राशि देकर उनके लिए कुछ छोड़ जाने की अभिलाषा को पूर्ण कर देती है ,
या फिर उस व्यक्ति पर कुछ कर्जा वगेरह चढ़ा हो तो वो उसे चुकाकर आराम से मृत्यु के प्राप्त कर सके ,
या फिर तत्कालीन सरकार ये पुरस्कार देकर खुद को गौरान्वित करने का प्रयत्न करती है ,
या सतकर्म करने वालों को उसके बदले में कुछ कर देने का दम्भ भरने के लिय ऐसा कुछ करती है |
इसी प्रकार से' भारत रत्न "का खिताब देने में भी कुछ कुछ ऐसा ही करती है ,अभी कल आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को भारत रत्न से नवाजा गया वो भी उनके घर जाकर ,यद्यपि ये एक अच्छा कदम है की एक अच्छे व्यक्ति को सम्मान उसके घर जाकर भी दिया जा सकता है ,परन्तु जब आदरणीय महामहिम प्रणव मुखर्जी उनको भारत रत्न प्रदान कर रहे थे तो शायद उनको ये भी पता नहीं था की उनके साथ क्या हो रहा है ,नाही वो कुछ बोल रहे थे और नाही कुछ शायद देख भी रहे थे उनकी ग्रीवा एक तरफ को झुकी हुई थी अब ऐसे पारितोषिक का भी क्या लाभ की प्राप्त करने वाले को पता ही न लगे ,यदि ये पुरस्कार उनको अब से ५ या १० वर्ष पहले दे दिया जाता तो उसके प्राप्त करने का आनंद ही कुछ और होता ,चलो देर आये दुरुस्त आये .
पर में देश के कर्णधारों से प्रार्थना करूँगा की वो दादा साहेब फाल्के अथवा भारत रत्न जिन महानुभावों को भी प्रदान करे कृपया समय के रहते ही दे दें अथवा ऐसी बुरी स्तिथि में देने का कोई फायदा नजर नहीं आता क्योँकि अक्सर मैनें ऐसे महानुभावों को पुरस्कार प्राप्त करते ही कुछ ही समय के अंतराल में स्वर्गवासी होते देखा है जिसके कारण मेरा ह्रदय प्लावित होता है |






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