Sunday, November 24, 2013

सुख कि परिभाषा

जब भीष्म पितामह  म्रत्यु शैया  पर पड़े थे तो उस समय  युधिष्ठिर ने उनसे ये प्रश्न पूछा कि एक साधारण पुरुष किस प्रकार के आचरण करने से जीवन में सरलता से सुख प्राप्त कर सकता है ,तो तीरों से बिंधे भीष्म पितामह ने इस जिज्ञाषा का समाधान करने के लिए मनुष्य के ३६ गुणों का वर्णन किया |
धर्म का आचरण करें पर कटुता ना आने दें | क्रूरता का आश्रय लिए बिना ही अर्थ का उपार्जन और संगर्ह करें |मर्यादा का अतिक्रमण ना करते हुए ही विषयों को भोगें | दीनता ना लाते हुए ही प्रिय भाषण करें |शूरवीर बनें किन्तु बढ़ चढ़ कर बातें ना करें | दान दें परन्तु अपात्र को नहीं | दुष्टों के साथ मेल ना करें ,बंधुओं से कलह ना ठानें |लालची को धन ना दें | जो राज भक्त ना हों ऐसे दूत से काम ना लें | साधों का धन ना छीने | नीचों का आश्रय ना लें | अच्छी तरह जांच किये बिना दंड ना दें | गुप्त मंत्रणा को प्रकट ना करें |जिन्होंने कभी अपकार किया हो उनपर विश्वास ना करें |किसी से ईर्ष्या ना करें और स्त्रियों कि रक्षा करें | शुद्ध होकर रहें  और किसी से घ्रणा ना करें | स्वादिष्ट भोजन भी अधिक ना खाएं | दंभहीन होकर देवपूजन करें | अनिंदित उपाय से लक्ष्मी प्राप्त करने कि इच्छा करें | स्नेह पूर्वक बड़ों कि सेवा करें | कार्यकुशल हों किन्तु अवसर का सदा विचार रखें | केवल पिंड छुड़ाने के लिए किसी से  चिकनी चुपड़ी बात ना करें |किसी पर कृपा करते समय  उसपर  आक्षेप ना करें |शत्रुओं को मारकर उसपर शोक ना करें | अकस्मात क्रोध ना करें | जिन्होंने आपका अपकार किया हो उनके प्रति कोमलता का बर्ताव ना करें |
भीष्म ने कहा हे तात :_
अदि अपना हित चाहते हो तो सदा इसी प्रकार का व्यवहार करो ,यदि ऐसा नहीं करोगे तो जीवन में सहज भाव से सुख और आनंद का भोग नहीं कर पाओगे और कभी भी बड़ी विपत्ति में पड़ जाओगो | तो भाइयो यही है महा भीष्म का उपदेश |



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