भारतवर्ष में सदियों से आजतक मुख्यतया हिन्दू समाज में जब लड़की पैदा होती है तो बजाय खुशियां मनाने के शोक जैसा कुछ माहोल हो जाता है ,सभी पारिवारिक सदस्यों के मुखों पर १२ बज जाते हैं और कुछ परिवारों में तो उस दिन खाना तक भी नहीं बनता मानो कि उस आने वाली लड़की ने उनका सभी कुछ छीन लिया हो ,और उस नवजात बच्ची को घ्रणा भरे और तिरस्कारित नेत्रों से देखा जाता है जब कि उस एवं अन्य लड़कियों के बिना ना तो समाज बन सकता है ,और ना ही समाज का उद्धार हो सकता है ,और नाही समाज कि रक्षा हो सकती है और नाही समाज का शुद्धिकरण ,क्योंकि ये लडकियां ही बड़ी होकर माँ ,बहन ,पत्नी और भी कुछ अनजाने रिश्ते बनाकर समाज कि उतपत्ति ,रक्षा ,और शुद्धिकरण तक करती हैं |इसके बावजूद भी आखिर आदमी ये सब कुछ क्यों करता है ,लानत है मनुष्यों पर जो खुद को मनुष्य तो कहते हैं पर वो हैं पशुओं से भी गए ,गुजरे |
Thursday, November 28, 2013
लडकियां
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