Saturday, December 6, 2014

हम शिकवे शिकायत क्योँ करें तुम  से
जब तुमने जिंदगी से ही जुदा कर दिया है
मैंने गजलें लिख लिख भेजी थी तुमको पर
 तुमने अब तक खतो किताबत ना किया है
मेरा कसूर क्या था जानेमन ,हुस्ने बहार 
मैंने तो माशूका समझकर बस इश्क़ किया है
आज तक  खुद  को फरहाद समझता रहा
और तुमको इबादत से शीरी खिताब दिया है ,

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