हम शिकवे शिकायत क्योँ करें तुम से
जब तुमने जिंदगी से ही जुदा कर दिया है
मैंने गजलें लिख लिख भेजी थी तुमको पर
तुमने अब तक खतो किताबत ना किया है
मेरा कसूर क्या था जानेमन ,हुस्ने बहार
मैंने तो माशूका समझकर बस इश्क़ किया है
आज तक खुद को फरहाद समझता रहा
और तुमको इबादत से शीरी खिताब दिया है ,
जब तुमने जिंदगी से ही जुदा कर दिया है
मैंने गजलें लिख लिख भेजी थी तुमको पर
तुमने अब तक खतो किताबत ना किया है
मेरा कसूर क्या था जानेमन ,हुस्ने बहार
मैंने तो माशूका समझकर बस इश्क़ किया है
आज तक खुद को फरहाद समझता रहा
और तुमको इबादत से शीरी खिताब दिया है ,
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