इतने जख्म दिए है तुमने कि
मलहम के फाये भी कम पड़ जायेंगे
आज अपनों का शहीदी दिवस मना रहे जो
कल तुम्हारा भी मातम वो ही जरूर मनाएंगे |
बकरों कि माएं आखिर कब तक खैर मनाएंगी
शहीदों कि माएं तुम्हारे गले पर छुरियाँ चलाएंगी
फिर तुम्हारा नामो निशाँ इस जहां में नहीं बचेगा
नाही कोई अश्क बहायेगा तुम्हारे लिए नाही मातम मानेगा |
मलहम के फाये भी कम पड़ जायेंगे
आज अपनों का शहीदी दिवस मना रहे जो
कल तुम्हारा भी मातम वो ही जरूर मनाएंगे |
बकरों कि माएं आखिर कब तक खैर मनाएंगी
शहीदों कि माएं तुम्हारे गले पर छुरियाँ चलाएंगी
फिर तुम्हारा नामो निशाँ इस जहां में नहीं बचेगा
नाही कोई अश्क बहायेगा तुम्हारे लिए नाही मातम मानेगा |
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