Monday, July 7, 2014

अश्क़ बहते हुए देखकर
भला पसीना किसका नहीं छूटता
तपस भरी हो अगर जिस्म में
भला लावा किसका नहीं फूटता
इश्क़ जब कुलाचें मारता है तो
उलटा सीधा कुछ नहीं सूझता
दिल आ जाए गर गधी पर तो
हंसनी भी लगती है बदसूरत बेवफा,

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