अश्क़ बहते हुए देखकर
भला पसीना किसका नहीं छूटता
तपस भरी हो अगर जिस्म में
भला लावा किसका नहीं फूटता
इश्क़ जब कुलाचें मारता है तो
उलटा सीधा कुछ नहीं सूझता
दिल आ जाए गर गधी पर तो
हंसनी भी लगती है बदसूरत बेवफा,
भला पसीना किसका नहीं छूटता
तपस भरी हो अगर जिस्म में
भला लावा किसका नहीं फूटता
इश्क़ जब कुलाचें मारता है तो
उलटा सीधा कुछ नहीं सूझता
दिल आ जाए गर गधी पर तो
हंसनी भी लगती है बदसूरत बेवफा,
No comments:
Post a Comment