मस्ती का आलम बहुत दिन बाद आया है
थोड़ा सा सरूर तो चढ़ जाने दो,
अभी तो जुबान ही बहकने लगी है ,
थोड़े से पैर भी तो लड़खड़ाने दो ,
दारु तो हमने कभी पीकर नहीं देखि
अहंकार में ही थोड़ा झूम जाने दो
हमने कब कहा था पूरा ठेका हमारा है
समाज के ठेकेदारों को भी करके दिखने दो |
थोड़ा सा सरूर तो चढ़ जाने दो,
अभी तो जुबान ही बहकने लगी है ,
थोड़े से पैर भी तो लड़खड़ाने दो ,
दारु तो हमने कभी पीकर नहीं देखि
अहंकार में ही थोड़ा झूम जाने दो
हमने कब कहा था पूरा ठेका हमारा है
समाज के ठेकेदारों को भी करके दिखने दो |
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