क्या कभी किसी पुरुष ने
किसी स्त्री को रोते ,
बिलखते
सुबकते
या जमींदोज होते देखा है ,
शायद नहीं
यदि देखा भी है तो
परवाह नहीं की
क्योंकि वो उसमे
अपनी माँ ,बहन ,बेटी का
स्वरूप नहीं देखता है
देखता भी है तो
उसके मुख पर बहते रूद्र नहीं
बल्कि मुखारबिंद की भाव भंगिमा
शारीरिक सौष्ठवता
आंतरिक सबंध बनाने का
भरसक प्रयत्न करता है |
किसी स्त्री को रोते ,
बिलखते
सुबकते
या जमींदोज होते देखा है ,
शायद नहीं
यदि देखा भी है तो
परवाह नहीं की
क्योंकि वो उसमे
अपनी माँ ,बहन ,बेटी का
स्वरूप नहीं देखता है
देखता भी है तो
उसके मुख पर बहते रूद्र नहीं
बल्कि मुखारबिंद की भाव भंगिमा
शारीरिक सौष्ठवता
आंतरिक सबंध बनाने का
भरसक प्रयत्न करता है |
No comments:
Post a Comment