जिसका आधार ही वैधव्य हो
और वर्तमान ,चुपचाप समझदार
जिसका भविष्य हो वर्णशंकर
और मूलमंत्र हो भ्रष्टाचार से प्यार ,
जो मन्त्र तो स्वयम पढ़ते हैं
बाम्बी पर हाथ ओरों का रखते हैं
एकत्रित करने वाले करते रहते हैं
पर कुबेर बन ,राज स्वयम करते हैं
चमचे उनकी खिचड़ी घोटते रहते हैं
पैरों के तलवे भी चाटते रहते हैं
सम्पूर्ण खिचड़ी जब वो खा लेते हैं
तो खुरचन से उदर भर लेते हैं ,
और वर्तमान ,चुपचाप समझदार
जिसका भविष्य हो वर्णशंकर
और मूलमंत्र हो भ्रष्टाचार से प्यार ,
जो मन्त्र तो स्वयम पढ़ते हैं
बाम्बी पर हाथ ओरों का रखते हैं
एकत्रित करने वाले करते रहते हैं
पर कुबेर बन ,राज स्वयम करते हैं
चमचे उनकी खिचड़ी घोटते रहते हैं
पैरों के तलवे भी चाटते रहते हैं
सम्पूर्ण खिचड़ी जब वो खा लेते हैं
तो खुरचन से उदर भर लेते हैं ,
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