Monday, March 14, 2016

hnsee

     हंसी जब गरीबों  के ओष्ठों पर मयूर जैसी
     थिरकती है तो कुछ और ही बात होती है ,
     यौ तो अमीरों की हंसी दिन भर देखते हैं
     परन्तु वो सदैव बनावटी ही प्रतीत होती है    ,
     दो सूखी रोटियां उदरस्थ हो जाने  भर से
     जो आत्म संतुष्टि गरीब को प्राप्त होती है ,
     करोडो रुपया पानी की भांति बहाने पर भी
     किसी अमीर को कहाँ  कभी प्राप्त होती है ,
     तड़फते रहते हैं अमीर क्षणिक हंसी हेतु
    जैसे ही मिलती है तो परेशानी सामने होती है ,
    गरीब  को जब आती है तो आती ही रहती है
     सब कष्ट दर्द मिटा ओतप्रोत कर  देती  है

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