जिनको आज हम
पैरों से मसल रहे हैं
कभी वो हमारे सरफरोश थे
पेड़ पर लगे थे तो शांत थे
जमी पर पड़े तो चरमरा रहे हैं
अपने अच्छे दिनों की कहानी को
महाभारत की भांति सुना रहे हैं
मरते दम तक भी अभिमान टूटेगा नहीं
यही उपदेश देते देते शहीद होते जा रहे हैं ।
पैरों से मसल रहे हैं
कभी वो हमारे सरफरोश थे
पेड़ पर लगे थे तो शांत थे
जमी पर पड़े तो चरमरा रहे हैं
अपने अच्छे दिनों की कहानी को
महाभारत की भांति सुना रहे हैं
मरते दम तक भी अभिमान टूटेगा नहीं
यही उपदेश देते देते शहीद होते जा रहे हैं ।
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