हुश्न को बिना देखे
इबारत नहीं लिखी जाती
और हुश्न देखने के पश्चात
ईमारत बना दी जाती है
यदि हुस्न कबीले तारीफ हो
तो इबारत भी गजब ढाती है ,
यदि महबूब बादशाह हो तो
मुहब्ब्त ताजमहल बन जाती है ।
इबारत नहीं लिखी जाती
और हुश्न देखने के पश्चात
ईमारत बना दी जाती है
यदि हुस्न कबीले तारीफ हो
तो इबारत भी गजब ढाती है ,
यदि महबूब बादशाह हो तो
मुहब्ब्त ताजमहल बन जाती है ।
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