एक शायर की शादी के कुछ दिन बाद का ये शेर है ।
जिनके कल तक हम महबूब हुआ करते थे
आज वो हमारे महबूब बन गए हैं
वो आराम फ़रमा रहे हैं बिस्तर पे
और हम जमीं पे शादी की इबारत लिखरहे हैं
जिनके कल तक हम महबूब हुआ करते थे
आज वो हमारे महबूब बन गए हैं
वो आराम फ़रमा रहे हैं बिस्तर पे
और हम जमीं पे शादी की इबारत लिखरहे हैं
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