हंसी जब गरीबों के ओष्ठों पर मयूर जैसी
थिरकती है तो कुछ और ही बात होती है ,
यौ तो अमीरों की हंसी दिन भर देखते हैं
परन्तु वो सदैव बनावटी ही प्रतीत होती है ,
दो सूखी रोटियां उदरस्थ हो जाने भर से
जो आत्म संतुष्टि गरीब को प्राप्त होती है ,
करोडो रुपया पानी की भांति बहाने पर भी
किसी अमीर को कहाँ कभी प्राप्त होती है ,
तड़फते रहते हैं अमीर क्षणिक हंसी हेतु
जैसे ही मिलती है तो परेशानी सामने होती है ,
गरीब को जब आती है तो आती ही रहती है
सब कष्ट दर्द मिटा ओतप्रोत कर देती है
थिरकती है तो कुछ और ही बात होती है ,
यौ तो अमीरों की हंसी दिन भर देखते हैं
परन्तु वो सदैव बनावटी ही प्रतीत होती है ,
दो सूखी रोटियां उदरस्थ हो जाने भर से
जो आत्म संतुष्टि गरीब को प्राप्त होती है ,
करोडो रुपया पानी की भांति बहाने पर भी
किसी अमीर को कहाँ कभी प्राप्त होती है ,
तड़फते रहते हैं अमीर क्षणिक हंसी हेतु
जैसे ही मिलती है तो परेशानी सामने होती है ,
गरीब को जब आती है तो आती ही रहती है
सब कष्ट दर्द मिटा ओतप्रोत कर देती है
No comments:
Post a Comment