हशरतों की आग में इंसान
कभी कभी इतना मसरूफ हो जाता है
कि उनको पाने की चाह में
इंसान ना रह ,खब्बीस और मगरूरहो जाता है ,
सोचने समझने का माद्दा नहीं रहता उसमे
वो इंसान से शैतान बन जाता है
कभी कभी इतना मसरूफ हो जाता है
कि उनको पाने की चाह में
इंसान ना रह ,खब्बीस और मगरूरहो जाता है ,
सोचने समझने का माद्दा नहीं रहता उसमे
वो इंसान से शैतान बन जाता है
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