भाइयो मै ये लेख इस लिए लिख रहा हूँ क्योँकि माँ का गुणगान तो सभी लोग करते हैं परन्तु जो जीवन भर मनुष्य का साथ निभाती है उसके बारे किसी की भी लेखनी दो शब्द नहीं उगलती |
लगभग प्रत्येक मनुष्य के जीवन में
एक स्त्री भी अवश्य आती है
जिसको धर्म पत्नी कहा जाता है
और धर्म पत्नी का खिताब उसे
उसके अभिभावकों के द्वारा
दहेज़ स्वरूप लाखों खर्च करके
पति देव से दिलवाया जाता है |
और शादी के बाद जिंदगी में
कभी कभार ऐसा मौका भी आता है
जब माँ ,बाप भाई बंधु रिश्तेदार
सब पति देव को छोड़ जाते हैं ,
तब एक धर्म पत्नी ही होती है
जो पति का साथ नहीं छोड़ती
स्वयं को पूर्णत:समर्पित करके
खानदान को जाज्वलित करती |
सावित्री बन पति की दीर्घायु हेतु
ईश से व्रत, कामनाये करती
यदि परिवार को चलाने हेतु
श्रम करना पड़े तो पीछे नहीं हटती ,
पति को परमेश्वर मान करके
उसकी इच्छाओं को सर्वोपरि रख
अपनी इच्छाओं का गला घोँट
कंधे कंधा मिलाकर साथ चलती |
तो कभी कभी सीता बन करके
पति के साथ वनो में विचरण करती
रावण जैसों के द्वारा अपहरण होने पर
अपने पति व्रत धर्म को नहीं छोड़ती ,
वापस पति के घर आ जाने पर
कुलच्छिनी जैसे शब्दों का भ्र्म जान
आरोप प्रत्यारोप लगाए जाने पर
अग्नि में कूद जीवन इति करती |
लगभग प्रत्येक मनुष्य के जीवन में
एक स्त्री भी अवश्य आती है
जिसको धर्म पत्नी कहा जाता है
और धर्म पत्नी का खिताब उसे
उसके अभिभावकों के द्वारा
दहेज़ स्वरूप लाखों खर्च करके
पति देव से दिलवाया जाता है |
और शादी के बाद जिंदगी में
कभी कभार ऐसा मौका भी आता है
जब माँ ,बाप भाई बंधु रिश्तेदार
सब पति देव को छोड़ जाते हैं ,
तब एक धर्म पत्नी ही होती है
जो पति का साथ नहीं छोड़ती
स्वयं को पूर्णत:समर्पित करके
खानदान को जाज्वलित करती |
सावित्री बन पति की दीर्घायु हेतु
ईश से व्रत, कामनाये करती
यदि परिवार को चलाने हेतु
श्रम करना पड़े तो पीछे नहीं हटती ,
पति को परमेश्वर मान करके
उसकी इच्छाओं को सर्वोपरि रख
अपनी इच्छाओं का गला घोँट
कंधे कंधा मिलाकर साथ चलती |
तो कभी कभी सीता बन करके
पति के साथ वनो में विचरण करती
रावण जैसों के द्वारा अपहरण होने पर
अपने पति व्रत धर्म को नहीं छोड़ती ,
वापस पति के घर आ जाने पर
कुलच्छिनी जैसे शब्दों का भ्र्म जान
आरोप प्रत्यारोप लगाए जाने पर
अग्नि में कूद जीवन इति करती |
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