संसार में जितने मनुष्य प्रक्र्तिवश अंधे हैं ,उससे कितने ही गुना स्वार्थ वश अंधे हैं ,प्रकृतिवश अँधा व्यक्ति इस संसार की प्रत्येक वस्तु ,जीव जंतु जानवर सहित भाई बंधु पिता माता सभी से अगाध प्रेम करता है ,परन्तु स्वार्थवश अँधा व्यक्ति अपने सिवाय इन सभी में से किसी को भी प्यार नहीं करता,और यदि करता भी है तो उसे जिससे उसकी स्वार्थसिद्धि हो जाए |
Wednesday, May 24, 2017
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