मैंने रिश्तों को सदैव ही
ग्रहण लगते हुए देखा है
पर चांदनी में नहाती हुई
कभी पूनम की रात ना देखी,
धन ऐश्वर्य हो जाने पर
अहंकार को बहुतं देखा है
एक दुसरे से प्रतिबद्ध तो है
पर नम्रता पूर्वक बात ना देखीं ,
ह्रदयों में अंगारे सुलगते हैं
पर सावन की बरसात ना देखी
भादों की उमस भरी रात देखी हैं
पर माघ की बर्फीली रात ना देखी|
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